वह देश की बेटी चली गई है कभी ना वापस आने को,
अब चाहे जितने दीप जला लो अपना मन बहलाने को।
यूँ दीप जला और मार्च निकाल कर क्या हासिल कर पाओगे,
कब तक अहिंसा की आड़ में अपने नपुंसकत्व को छिपाओगे।
संवेदना विहीन प्रशासन से न्याय की आशा बेमानी है,
अब आत्म-रक्षा के हेतु हमें खुद ही तलवार उठानी है।
जब हर नारी में चण्डी-दुर्गा, नर में श्री राम विराजेंगे,
तब अत्याचार करने से पूर्व महिषासुर-रावण काँपेंगे।
यह याद रहे उस भगिनी का बलिदान व्यर्थ नहीं जाये,
यही सच्ची श्रद्धंजली होगी उसे कि मेरा भारत जग जाये।
अब चाहे जितने दीप जला लो अपना मन बहलाने को।
यूँ दीप जला और मार्च निकाल कर क्या हासिल कर पाओगे,
कब तक अहिंसा की आड़ में अपने नपुंसकत्व को छिपाओगे।
संवेदना विहीन प्रशासन से न्याय की आशा बेमानी है,
अब आत्म-रक्षा के हेतु हमें खुद ही तलवार उठानी है।
जब हर नारी में चण्डी-दुर्गा, नर में श्री राम विराजेंगे,
तब अत्याचार करने से पूर्व महिषासुर-रावण काँपेंगे।
यह याद रहे उस भगिनी का बलिदान व्यर्थ नहीं जाये,
यही सच्ची श्रद्धंजली होगी उसे कि मेरा भारत जग जाये।