प्राण प्रतिष्ठित शिवलिंग था रत्न-जड़ित महान,
मंदिर सोमनाथ का था हिंद देश की शान।
तीर्थ यात्री आते थे लाखों दर्शन करने वहाँ,
और सहस्त्रों ब्राह्मण करते थे प्रभु की सेवा।
सैकड़ों नर्तक-गायक अपनी कला दिखाते थे,
और बाबा सोमनाथ की महिमा गाते जाते थे।
सबको था पूर्ण विश्वास कि बाबा रक्षा करेंगे,
यदि विधर्मी-हमला हुआ तो तीसरा नेत्र खोलेंगे।
भूल गये कि प्रभु आकर उनको ही बचाते हैं,
धर्म-रक्षा हेतू जो बढ़कर शस्त्र उठाते हैं।
हू-अकबर चिल्लाते हुए राक्षसों की सेना आई,
गाजर-मूली जैसे काटा, लहू की नदी बहाई।
शिवलिंग तब खंडित हुआ, मरे काफ़िर पचास हज़ार,
'शांति का धर्म' था खड़ा हाथ लिए तलवार।
उखड़े मंदिर के किवाड़ और लुटा मंदिर का कोष,
और सहिष्णू देते रहे सोमनाथ को दोष।
एक नहीं असंख्य मंदिरों की ऐसी ही कहानी है,
और जो बचे हुए हैं उनकी भी दुर्गत हो जानी है।
अवतार की आस लगाकर के कुछ प्राप्त नहीं हो पायेगा,
धर्म-रक्षा तब ही होगी जब हिंदू शस्त्र उठायेगा।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteक्या बात हैं भारतीय जी