उठो युवा रणभेरी बज चुकी, मात्र-भूमि की पुकार है,
जो अब भी ना जागे तो तुम्हारे जीवन पर धिक्कार है।
रहे गुलाम कई सदियों अब तोड़ो दास्तां की बेड़ीयाँ,
करो माता को सर्वस्व समर्पित यह माँ का अधिकार है।
माता का वह वैभव अपार जिस पर माता शोभित थी कभी,
तुम याद करो वह अत्याचार जो देश-धर्म पर हुए सभी।
अब उनको समुचित उत्तर दो जो करते अत्याचार हैं,
उठो युवा रणभेरी................
शैतान पड़ोसी आँख गड़ाये बैठा अपनी धरती पर,
आतंकवाद का जाल फैलाया है जिसने माँ भारती पर।
वार्तालाप अब बहुत हो चुका, करना उस पर वार है,
उठो युवा रणभेरी..........
एक ओर से ड्रैगन हमको आँख दिखाया करता है,
72000 वर्ग मील धरा पर धाक जमाया करता है।
अब मानसरोवर वापस लेंगे उस पर अपना अधिकार है,
उठो युवा रणभेरी.........
पर सबसे पहले घर को साफ कराना बहुत जरुरी है,
वो भीतराघाती जो व्यवस्था की आज बने मजबूरी हैं।
देश-धर्म के वो दुश्मन जो पीठ पे करते वार हैं,
उठो युवा रणभेरी........
Tuesday, 20 March 2012
Sunday, 11 March 2012
गोधरा की तुम सोच ना लेना.......
गोधरा की तुम सोच ना लेना, हम गुजरात दोहरा देंगे,
अबकी बार जामा मस्जिद तक पर भगवा फहरा देंगे।
देश ने तुमको युँ माना जैसे चिराग होता घर का,
किसे पता था ये चिराग खुद घर में आग लगा देंगे।
नफ़रत की ज्वाला भड़काकर तुमने कश्मीर जलाया है,
उस आग को देकर दिशा नई अब स्वाहा तुम्हें करा देंगे।
वर्षों बीत गये हैं मगर बाबरी-बाबरी चिल्लाते हो,
अब बारी मथुरा-काशी की, वहाँ भी शुद्धी करवा देंगे।
1200 साल के अत्याचार ना भूले हैं, ना भूलेंगे,
तुम भूल भी जाओगे तो तुमको याद पुन: दिलवा देंगे।
वो दिन हवा हुए जब हम शांती की माला जपते थे,
अब माँओं ने हैं शेर जने जो चीर के तुम्हें दफ़ना देंगे।
हर बार तुम्हारे वार के बदले हमने तुमको प्यार दीया,
अब वार के बदले होगा वार, धरती से तुम्हें मिटा देंगे।
अबकी बार जामा मस्जिद तक पर भगवा फहरा देंगे।
देश ने तुमको युँ माना जैसे चिराग होता घर का,
किसे पता था ये चिराग खुद घर में आग लगा देंगे।
नफ़रत की ज्वाला भड़काकर तुमने कश्मीर जलाया है,
उस आग को देकर दिशा नई अब स्वाहा तुम्हें करा देंगे।
वर्षों बीत गये हैं मगर बाबरी-बाबरी चिल्लाते हो,
अब बारी मथुरा-काशी की, वहाँ भी शुद्धी करवा देंगे।
1200 साल के अत्याचार ना भूले हैं, ना भूलेंगे,
तुम भूल भी जाओगे तो तुमको याद पुन: दिलवा देंगे।
वो दिन हवा हुए जब हम शांती की माला जपते थे,
अब माँओं ने हैं शेर जने जो चीर के तुम्हें दफ़ना देंगे।
हर बार तुम्हारे वार के बदले हमने तुमको प्यार दीया,
अब वार के बदले होगा वार, धरती से तुम्हें मिटा देंगे।
Tuesday, 6 March 2012
जिधर भी देखो.........
जिधर भी देखो काश्मीर शमशान सरीखा दिखता था,
मानवता का नाम वहाँ पर फीका-फीका दिखता था।
मूलनिवासी पंडितों ने वहाँ हैवानीयत को देखा है,
आज भी उनकी आँखों से बहती उस दर्द की रेखा है।
माँ-बहनें बाजारों में निर्वस्त्र दौड़ाई जाती थीं,
जहाँ भी हिंदू दिखता था, तलवार चलाई जाती थी।
मंदिर तोड़े जाते थे, बस्तीयाँ जलाई जाती थीं,
भारत माँ को देकर गाली शान दिखाई जाती थी।
आज भी उसी काश्मीर में भारत माँ शर्मिंदा हैं,
माँ को छलनी करने वाले दैत्य अभी तक जिंदा हैं।
पाकिस्तानी नारे गाते जिनके होंठ नहीं थकते,
जिनको भारत माता की आँखों के आँसू नहीं दिखते।
जो मेरी माता का आँचल नोच रहे हैं फाड़ रहे,
जो रह-रह कर माता के सीने में खंजर गाड़ रहे।
क्यों ना उनके हाथों के टुकड़े सहस्त्र कर डालूँ मैं,
क्यों ना उनको जीवित ही इस धरती में दफ़ना दूँ मैं।
मानवता का नाम वहाँ पर फीका-फीका दिखता था।
मूलनिवासी पंडितों ने वहाँ हैवानीयत को देखा है,
आज भी उनकी आँखों से बहती उस दर्द की रेखा है।
माँ-बहनें बाजारों में निर्वस्त्र दौड़ाई जाती थीं,
जहाँ भी हिंदू दिखता था, तलवार चलाई जाती थी।
मंदिर तोड़े जाते थे, बस्तीयाँ जलाई जाती थीं,
भारत माँ को देकर गाली शान दिखाई जाती थी।
आज भी उसी काश्मीर में भारत माँ शर्मिंदा हैं,
माँ को छलनी करने वाले दैत्य अभी तक जिंदा हैं।
पाकिस्तानी नारे गाते जिनके होंठ नहीं थकते,
जिनको भारत माता की आँखों के आँसू नहीं दिखते।
जो मेरी माता का आँचल नोच रहे हैं फाड़ रहे,
जो रह-रह कर माता के सीने में खंजर गाड़ रहे।
क्यों ना उनके हाथों के टुकड़े सहस्त्र कर डालूँ मैं,
क्यों ना उनको जीवित ही इस धरती में दफ़ना दूँ मैं।
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