Thursday, 20 June 2013

फिर से इक पाकिस्तान ना हो.....

19 जनवरी सन 90 की सुबह बहुत ही काली थी,
हिन्दू सब सहमे-दुबके थे, विपदा आने वाली थी|
 

अपने घर में ही उनको खुलकर धमकाया जाता था,
इस्लाम कबूलो या घर छोड़ो – फरमान सुनाया जाता था|
 

मंदिर टूटे, अस्मत लूटी गई, लहू सना था माटी में,
भारत माँ को छलनी किया गया काश्मीर की घाटी में|


धर्म रक्षा करने हेतू हिन्दूओं ने अपना घर त्यागा,
जान बचाने को अपनी हर कश्मीरी हिन्दू भागा|
 

ढाई दशक हैं बीत चुके पर विस्थापित आबाद नहीं,
फिर भी नेता कहते हैं ‘इस्लामिक’ आतंकवाद नहीं|
 

गुजरात का सब रोना रोते पर काश्मीर को भुला दीया,
काश्मीर - जिसने भारत को खून के आँसू रुला दीया|
 

काश ये नेता समझा सकते देश-द्रोह की परिभाषा,
लेकिन देश से बढ़कर है इनको कुर्सी की अभिलाषा|
 

जाग युवा अब देश बचा ले,भारत का फिर अपमान ना हो,
देश ना फिर से खंडित हो, फिर से इक पाकिस्तान ना हो|

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