माँ भारती का खोया गौरव वापस लाना है,
हुतात्मा गोडसे जी के स्वप्न को सच कर जाना है.
सिंधु नदी पुनः बहेगी भगवा ध्वज के नीचे,
अखंड भारत का हमें पुनः निर्माण कराना है.
Thursday, 25 August 2011
Saturday, 20 August 2011
Friday, 19 August 2011
अब और करो विश्राम नहीं
संसद में चलते हैं जूते सदाचार का नाम नहीं,
हर नेता है रावण जैसा किसी के भीतर राम नहीं।
धरती-पुत्र की आत्म-हत्या पर राजनीति जो करते हैं,
उनसे पूछो क्या खाओगे जब उपजेगा धान नहीं।
कालाबाज़ारी के चलते बीते कुछ दिन फ़ाके में,
फिर चल बसा गरीब मिला उसे वोट देने का ईनाम यही।
लूट मची है चहूँ ओर बस भ्रष्टाचार ही दिखता है,
हर कुर्सी है नोट की भूखी मानवता का नाम नहीं।
क्रांतिकारियों ने क्या इसी भारत का सपना देखा था,
उनके स्वप्न की लाज बचा लो उसे करो बदनाम नहीं।
उठो भारती माँ के सपूतों मात्रभूमी पर संकट है,
बहुत हुआ बस बहुत हुआ अब और करो विश्राम नहीं।
हर नेता है रावण जैसा किसी के भीतर राम नहीं।
धरती-पुत्र की आत्म-हत्या पर राजनीति जो करते हैं,
उनसे पूछो क्या खाओगे जब उपजेगा धान नहीं।
कालाबाज़ारी के चलते बीते कुछ दिन फ़ाके में,
फिर चल बसा गरीब मिला उसे वोट देने का ईनाम यही।
लूट मची है चहूँ ओर बस भ्रष्टाचार ही दिखता है,
हर कुर्सी है नोट की भूखी मानवता का नाम नहीं।
क्रांतिकारियों ने क्या इसी भारत का सपना देखा था,
उनके स्वप्न की लाज बचा लो उसे करो बदनाम नहीं।
उठो भारती माँ के सपूतों मात्रभूमी पर संकट है,
बहुत हुआ बस बहुत हुआ अब और करो विश्राम नहीं।
Wednesday, 17 August 2011
एक बार फिर...............
एक बार फिर देश में स्वतंत्रता संग्राम हो जाने दो,
एक बार फिर हृदय को सबके राग बसंती गाने दो.
एक बार फिर से चमके रानी झाँसी की तलवारें,
एक बार फिर वीर सावरकर को हूँकार लगाने दो.
एक बार फिर गूँज उठे मंगल पांडे की लल्कारें,
एक बार फिर संसद में थोडे से बम गिर जाने दो.
एक बार फिर लालाजी का नारा हो 'साइमन गो बैक',
एक बार फिर पंडित जी को कुछ अंग्रेज़ उडाने दो.
एक बार फिर से बिस्मिल के हाथों में हों बंदूकें,
एक बार फिर नेताजी को लहु की माँग उठाने दो.
और उदय हो जाने दो अनंत स्वतंत्रता का सूरज,
एक बार फिर हिंद को मेरे आज़ादी को पाने दो.
एक बार फिर हृदय को सबके राग बसंती गाने दो.
एक बार फिर से चमके रानी झाँसी की तलवारें,
एक बार फिर वीर सावरकर को हूँकार लगाने दो.
एक बार फिर गूँज उठे मंगल पांडे की लल्कारें,
एक बार फिर संसद में थोडे से बम गिर जाने दो.
एक बार फिर लालाजी का नारा हो 'साइमन गो बैक',
एक बार फिर पंडित जी को कुछ अंग्रेज़ उडाने दो.
एक बार फिर से बिस्मिल के हाथों में हों बंदूकें,
एक बार फिर नेताजी को लहु की माँग उठाने दो.
और उदय हो जाने दो अनंत स्वतंत्रता का सूरज,
एक बार फिर हिंद को मेरे आज़ादी को पाने दो.
आज़ादी फिर से खो रही है
दुर्भाग्य पर अपने माँ भारती रो रही है,
कलमकारों की कलमें फिर भी सो रही हैं।
जहाँ प्राण त्यागे आज़ाद, मंगल, भगत ने,
उस धरती पर विदेशियों की अर्चना हो रही है।
जहाँ देव-तुल्य समझे जाते थे साधु,
वहाँ साध्वी साम्प्रदायिक हो रही हैं।
जहाँ गुरुकुलों में दी जाती थी दीक्षा,
वहाँ आज संस्कृत विलुप्त हो रही है।
जहाँ घंटे-शंखों से गूँजते थे शिवालय,
वहाँ पाँच वक़्त आज़ानें हो रही हैं।
संभल जाओ, उठो, जागो ऐ हिन्द वालों,
मेरी माँ की आज़ादी फिर से खो रही है।
कलमकारों की कलमें फिर भी सो रही हैं।
जहाँ प्राण त्यागे आज़ाद, मंगल, भगत ने,
उस धरती पर विदेशियों की अर्चना हो रही है।
जहाँ देव-तुल्य समझे जाते थे साधु,
वहाँ साध्वी साम्प्रदायिक हो रही हैं।
जहाँ गुरुकुलों में दी जाती थी दीक्षा,
वहाँ आज संस्कृत विलुप्त हो रही है।
जहाँ घंटे-शंखों से गूँजते थे शिवालय,
वहाँ पाँच वक़्त आज़ानें हो रही हैं।
संभल जाओ, उठो, जागो ऐ हिन्द वालों,
मेरी माँ की आज़ादी फिर से खो रही है।
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